Lala ji ki Holi


लालाजी चले दूकान
नहीं किया होली का ध्यान।
बच्चो ने रस्ते में घेरा बनाया
रंग उनको खूब लगाया।
मुँह पर रगड़े लाल गुलाल
लालाजी फिर भी चले दुकान।

लोगो ने उनका मजाक उडाया
शक्ल को उनकी भूत बताया।
ये सुन लालजी असमंजस में है फ़िलहाल
लालजी फिर भी चले दुकान।
मुस्कुराते हुए उन्होंने शीशा उठाया
शीशे को फिर चेहरा दिखाया
हाथ में पकडे गिला रुमाल
लाला जी फिर भी चले दुकान॥
Poem By- Vipin Kumar



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