बंदर और टोपीवाला

एक था रामू, टोपीवाला। वह गाँव-गाँव जाकर रंग-बिरंगी टोपियाँ बेचता था। उसकी टोकरियाँ हमेशा सुंदर टोपियों से भरी रहती थीं। वह गाकर अपनी टोपियाँ बेचता था: "रंग-बिरंगी टोपियाँ ले लो, सिर पर इनको खूब सजा लो!"
एक गर्म दोपहर में, रामू चलते-चलते थक गया। उसने एक बड़े, घने पेड़ की छाया में आराम करने का फैसला किया। उसने अपनी टोपियों की टोकरी अपने पास रखी और लेट गया।
जल्द ही रामू को गहरी नींद आ गई। जब वह सो रहा था, तो पेड़ से कुछ शरारती बंदर नीचे उतरे। वे रामू की रंगीन टोपियों को देखकर बहुत उत्सुक हुए।
बंदरों ने चुपके से टोकरी से एक-एक टोपी निकाली और अपने सिर पर पहन ली। वे बहुत खुश थे। "देखो देखो बंदर आया, टोपियों पर मन ललचाया।"पेड़ की हर डाल पर बंदर बैठे थे, और हर बंदर के सिर पर एक सुंदर टोपी थी। वे खुशी से एक-दूसरे को देखकर किटकिटा रहे थे। जब रामू की नींद खुली, तो उसने देखा कि उसकी टोकरी खाली है! वह चौंक गया और घबराकर अपनी टोपियाँ ढूँढ़ने लगा। "मेरी टोपियाँ कहाँ गईं?" वह चिल्लाया। तभी उसे ऊपर से किटकिटाने की आवाज़ आई। उसने ऊपर देखा तो पाया कि सारे बंदर उसकी टोपियाँ पहने हुए हैं। उसे बहुत गुस्सा आया। "अरे! ये क्या हो गया भाई, मेरी सारी टोपी बंदर ले गए भाई!" रामू ने बंदरों पर चिल्लाया और उन्हें पत्थर मारे, लेकिन बंदरों ने भी उसकी नकल की और उस पर फल फेंके। वे उसकी टोपियाँ वापस नहीं दे रहे थे। रामू बहुत निराश हो गया। उसने गुस्से में अपनी टोपी सिर से उतारी और ज़मीन पर फेंक दी। "अब मैं क्या करूँ!" वह बोला। 
यह देखकर, बंदरों ने फिर उसकी नकल की! सभी बंदरों ने अपने सिर से टोपियाँ उतारीं और नीचे फेंक दीं। रामू को एक तरकीब सूझी। उसने जल्दी से सारी टोपियाँ इकट्ठी कीं, अपनी टोकरी में रखीं और खुशी-खुशी चला गया। "जैसी करनी वैसी भरनी, बंदरों ने की नकल अपनी।" 

बचपन की दुनिया – बच्चों के लिए रोचक कहानियाँ, प्यारी कविताएँ और मजेदार खेलों का खजाना। नन्हें–मुन्नों के लिए सीख और मस्ती से भरा यह पेज हर माता–पिता और बच्चे के लिए खास है।

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