सहारनपुर का गुघाल मेला – आस्था, साहस और हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक! 🌿 जहाँ झंडे से धर्म का प्रचार हुआ, जहाँ अंग्रेज भी गोगा जी की शक्ति से झुक गए, 🏞️ और जहाँ आज भी लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं... जाहरवीर गोगा जी की अमर कथा भाग- 10
🐍⚔️ सहारनपुर की पावन गाथा – जाहरवीर गोगा जी महाराज
🌿 850 साल पुराना मेला – देश का दूसरा सबसे बड़ा आयोजन
राजस्थान के बागड़ के बाद सहारनपुर में बाबा जाहरवीर गोगा जी महाराज का देश का दूसरा सबसे बड़ा मेला आयोजित होता है। यह मेला लगभग 850 वर्षों से निरंतर लगता आ रहा है।
मुगल काल में जब मंदिरों को तोड़ा गया और पूजा-पाठ पर रोक लगा दी गई, तब बाबा जाहरवीर गोगा जी महाराज ने झंडा पूजन की परंपरा शुरू की। इसी नीले झंडे (नीला निशान) से सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ, जो आज भी चलता आ रहा है।
🐍 अंग्रेजों से टकराव और चमत्कार
अंग्रेजी शासन में अंग्रेजों ने बाबा जाहरवीर गोगा जी के मेले को बंद करा दिया। कहते हैं कि तब बाबा जी ने अपनी शक्ति से अंग्रेजों के घरों में सांप छोड़ दिए। भयभीत होकर अंग्रेजों ने यह मेला बंद करने के बजाय 1 दिन से बढ़ाकर 3 दिन का कर दिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
आज भी इस मेले में 5 से 7 लाख श्रद्धालु विभिन्न राज्यों से पहुँचते हैं।
🏞️ गोगा जी का सहारनपुर आगमन और कबली भगत
कथाओं के अनुसार, बाबा गोगा जी सहारनपुर से हरिद्वार स्नान के लिए जाते थे। नकुड़ मार्ग पर अपनी सेना के साथ पड़ाव डालते थे।
करीब 850 वर्ष पूर्व उन्होंने सहारनपुर में कबली भगत को मछली पकड़ते देखा और कहा –
👉 “मछली मत पकड़ो, यह जीव हिंसा है।”
कबली भगत ने अपनी मजबूरी बताई, तब बाबा ने कहा –
👉 “तुम यह झंडा उठाओ और धर्म का प्रचार करो, तुम्हारी सारी समस्याएँ दूर हो जाएँगी।”
इसके बाद बाबा ने कबली भगत को चाँदी का नेजा (छड़ी) दिया और यहीं म्हाड़ी की स्थापना हुई।
🏠 सहारनपुर से गहरा संबंध
गोगा जी महाराज का सहारनपुर से गहरा नाता उनकी माता बाछल देवी से भी रहा। बाछल देवी सहारनपुर के सिरसा पट्टन (सिरसावा कस्बा) की रहने वाली थीं। गुरु गोरखनाथ जी की कृपा से गोगा जी का जन्म राजस्थान के ददरेवा में हुआ, परंतु मातृभूमि का संबंध सहारनपुर से था।
इसी कारण सहारनपुर की यह भूमि गोगा भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र बनी।
🎉 गुघाल मेला और छड़ियों की परंपरा
भाद्रपक्ष शुक्ल दशमी को सहारनपुर में ऐतिहासिक गुघाल मेला लगता है।
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मेले से 15 दिन पूर्व 26 छड़ियों का श्रृंगार किया जाता है।
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मेले के दिन नगर के विभिन्न हिस्सों से ढोल-नगाड़ों, बैंड-बाजों और नरसिंघे के साथ ये 18 से 20 फीट ऊँची छड़ियाँ गोगा जी की म्हाड़ी की ओर प्रस्थान करती हैं।
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नगर निगम पूरे मेले की व्यवस्था देखता है।
🤝 हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक
गोगा जी का यह मेला केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द का अद्भुत उदाहरण है। सहारनपुर की म्हाड़ी और गुघाल मेला हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों द्वारा मिलकर मनाया जाता है।
घर-घर में नेजा छड़ी की पूजा होती है और सभी लोग मिलकर गोगा जी की जयकार लगाते हैं –
✨ “जाहरवीर गोगा जी महाराज की जय!”
💫 कथा का सार
सहारनपुर की गोगा म्हाड़ी केवल एक मंदिर या मेला नहीं, बल्कि श्रद्धा, साहस और एकता का प्रतीक है।
👉 यहाँ गोगा जी की आस्था नागों पर विजय की गाथा सुनाती है।
👉 कबली भगत को नेजा देकर धर्म-प्रचार की परंपरा स्थापित करने की याद दिलाती है।
👉 और हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देती है।
💬 आपकी राय
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<- भाग १
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