जाहरवीर गोगा जी की अमर कथा भाग- 7

 


🌧️ वर्षा ऋतु की शुरुआत और संकट की घड़ी

और फिर वर्षा ऋतु की शुरुआत हुई। इस समय महल के दास खेतों में काम करते और दासियाँ उन्हें भोजन पहुँचाने जाया करती थीं। महल में विश्राम कर रहे गोगा जी ने रानी सीरियल से कहा –

💬 "इस भीषण गर्मी में सरोवर का ताज़ा जल पीने की इच्छा है।"

तब रानी सीरियल स्वयं ही घड़ा उठाकर गोगा जी के लिए जल लाने सरोवर की ओर निकल पड़ीं।


🏞️ सरोवर पर संकट

जैसे ही रानी ने सरोवर से घड़ा भरकर चलना चाहा, अर्जन और सर्जन ने उन्हें घेर लिया।

  • अर्जन ने माता का हाथ पकड़ते हुए कहा –
    💬 "अरे भाभी! लाओ घड़ा मुझे दो, मैं ले चलता हूँ।"

  • मौके का फायदा उठाकर सर्जन ने माता का पल्लू खींच लिया और बोला –
    💬 "सुंदर स्त्रियों के लिए युद्ध होना आम बात है। हमारी हो जाओ, नहीं तो गोगा की मृत्यु के बाद दासियों जैसा जीवन बिताना पड़ेगा।"

माता ने दृढ़ स्वर में कहा –
💬 "आप दोनों जेष्ठ होकर कैसी बातें कर रहे हैं? मैं आपकी बेटी जैसी हूँ, आपको शर्म आनी चाहिए।"

लेकिन अर्जन ने हठपूर्वक कहा –
💬 "स्वेच्छा से चल रही हो या जबरदस्ती उठाकर ले जाएँ?"


🙏 माता का आर्तनाद और गोगा जी का आगमन

माता सीरियल घोर विपदा में फँस चुकी थीं। तब उन्होंने मन ही मन अपने प्राणनाथ गोगा जी को याद किया।

👉 उधर, जब गोगा जी ने देखा कि रानी को आने में विलंब हो रहा है, तो वे तुरंत घोड़े पर सवार होकर सरोवर की ओर निकल पड़े।

🐎 घोड़े की टाप सुनते ही अर्जन और सर्जन घबरा गए। उन्होंने देखा कि नीले पर सवार उनका काल उनकी ओर बढ़ रहा है। बौखलाए दोनों भाई उसी क्षण भाग खड़े हुए।


😢 रानी का विलाप और गोगा जी का संकल्प

जब गोगा जी सरोवर पर पहुँचे तो डरी हुई माता उनके गले लगकर रो पड़ीं और सारा वृतांत कह सुनाया।

🔥 गोगा जी ने प्रचंड क्रोध में गर्जना करते हुए माता को यह वचन दिया –
💬 "मैं आपके साथ किए गए दुर्व्यवहार का बदला उन दोनों का सर काटकर ही लूँगा।"

🏹 गद्दार भाई और महमूद गजनवी की चाल

दूसरी तरफ जब अर्जन और सर्जन को गोगा जी से बचने का कोई मार्ग न सुझा तो दोनों गद्दार भाई सीधे महमूद गजनवी की शरण में जा पहुँचे। उस समय महमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर लूटने की योजना बना रहा था।
अफ़ग़ानिस्तान से संपूर्ण भारत लूटने के नापाक इरादों से आए इस सुल्तान का आतंक चरम पर था।


💰 रिश्वत और प्रस्ताव

अर्जन और सर्जन ने गोगा जी के विषय में महमूद गजनवी को चेताते हुए कहा कि –
“यदि परम शिवभक्त गोगा को पता चला कि आप सोमनाथ पर आक्रमण करने जा रहे हैं, तो वह आपके रास्ते की सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़े हो जाएँगे।”

इस पर विचार करते हुए महमूद गजनवी ने बेशकीमती हीरे-जवाहरात के साथ एक पत्र गोगा जी को भेजा। पत्र में लिखा था –
👉 “हमारी आपसे कोई शत्रुता नहीं है। आप हमारी सेना को सोमनाथ जाने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से रास्ता दे दें और मेरी तरफ से यह छोटी-सी भेंट स्वीकार कर लें।”


⚔️ गोगा जी का अडिग उत्तर

गोगा जी ने इस अफ़गानी बिलाव के प्रस्ताव को ठुकराते हुए अपना प्रति उत्तर पत्र में भेजा।
उन्होंने लिखा –
👉 “जब तक गोगा चौहान की देह में रक्त का एक कतरा भी मौजूद है, तुम्हें रास्ता देना तो दूर, सोमनाथ की तरफ आँख उठाकर देखने तक नहीं दूँगा।

इस उत्तर से महमूद गजनवी आग-बबूला हो उठा और उसी क्षण जंग का ऐलान करते हुए अपनी विशाल सेना लेकर ददरेवा की ओर बढ़ पड़ा।


🏇 युद्ध की तैयारियाँ

राजसत्ता के मोह में अंधे अर्जन और सर्जन भी अपने भाई के विरुद्ध, महमूद गजनवी के साथ युद्ध करने निकल पड़े।

जब युद्ध की खबर गोगा जी के ससुराल तंदूल पहुँची, तो वहाँ से भी समर्थन हेतु विशाल सेना बागड़ की ओर रवाना कर दी गई।

गोगा जी स्वयं अपने 900 वीर सैनिकों के साथ निकले, ताकि सुल्तान महमूद की विशाल सेना को तपोभूमि ददरेवा की पावन धरा पर कदम रखने से पहले ही रोक दिया जाए। 🚩

⚔️ खुड्डी का महासंग्राम

ददरेवा से लगभग 8.5 किलोमीटर दूर खुड्डी गाँव में दोनों सेनाएँ आमने-सामने आ खड़ी हुईं।
गोगा जी के ससुराल तंदूल से आ रही सेना को दूरी अधिक होने के कारण समय लग गया।
इधर रणभूमि में रक्त-प्यासे दोनों पक्षों के बीच युद्ध का बिगुल बज चुका था।


🐅 मां भवानी के वीर सपूतों की ललकार

मां भवानी के वीर सपूतों ने “जय माँ आशापुरा” और “हर हर महादेव” की गर्जना के साथ तुर्कों पर धावा बोल दिया।
सैकड़ों शेरों की दहाड़ से पूरा अंबर गूंज उठा।
अपने शौर्य और वीरता का परिचय देते हुए वीरों ने तुर्कों के रक्त की नदियाँ बहा दीं।


🌟 जाहिर पीर की महिमा

इसी दौरान महमूद गजनवी ने देखा कि गोगा जी एक ही समय पर अलग-अलग स्थानों पर युद्ध कर रहे हैं।
यह चमत्कार देख उसके मुख से निकला –
👉 “यह तो जाहिर पीर है!”

तभी से गोगा जी को जाहिर पीर (गोगा पीर) कहा जाने लगा।
समय के साथ लोग उन्हें जाहरवीर नाम से भी पुकारने लगे।


🩸 प्रतिज्ञा का पालन – अर्जन और सर्जन का अंत

जब रणभूमि में गोगा जी की दृष्टि अपने गद्दार भाइयों अर्जन और सर्जन पर पड़ी तो उनका रक्त ज्वाला बन उठा।
रानी सीरियल को दिए वचन को याद कर गोगा जी ने घोड़े की लगाम उनकी ओर मोड़ दी।

भाइयों ने असंख्य सैनिकों की आड़ लेकर सामना किया, लेकिन गोगा जी ने एक-एक कर सैकड़ों अफगानों को मौत के घाट उतार दिया।
लंबे और भीषण युद्ध के बाद गुरु गोरखनाथ की भविष्यवाणी सत्य हुई –
👉 गोगा जी ने अर्जन और सर्जन का सिर धड़ से अलग कर दिया।


🐎 गोगा जी का रौद्र रूप और गजनवी की हार

गोगा जी के रुद्र रूप को देखकर अफगानी सेना भाग खड़ी हुई।
गोगा जी ने पीछा कर महमूद गजनवी को धर दबोचा और उसे घोड़े के पीछे रस्सी से बाँधकर खुड्डी से ददरेवा तक घसीटा।

मृत्यु से भयभीत होकर गजनवी गोगा जी के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा माँगने लगा।
राजधर्म का पालन करते हुए गोगा जी ने उसे प्राणदान दिया।


😔 माता बाछल का शाप

इसके बाद गोगा जी अपने वचन अनुसार अर्जन और सर्जन के कटे सिर लेकर ददरेवा लौटे।
लेकिन अपने ही भाइयों के सिर गोगा जी के हाथों में देखकर माता बाछल का क्रोध सीमा पार कर गया।

भोली माता ने कहा –
👉 “तुमने अपने ही भाइयों को मार डाला! इसी वक्त यहाँ से चले जाओ और मुझे कभी अपनी शक्ल मत दिखाना।”

माता की आज्ञा सुनकर गोगा जी भारी मन और भरे नेत्रों से ददरेवा से निकल पड़े।


🟡 पीली पोशाक की परंपरा

जब तक गोगा जी की ससुराल की सेना ददरेवा पहुँची, तब तक युद्ध समाप्त हो चुका था।
किन्तु यह आशंका रही कि गोगा जी उन्हें शत्रु समझकर युद्ध न कर बैठें।
इसलिए सिंधा ने पत्र लिखकर सूचित किया कि –
👉 “जो सेना पीली पोशाक में आएगी, उसे अपनी समझना।”

तभी से आज तक पूर्व दिशा से ददरेवा आने वाले श्रद्धालु पीले वस्त्र धारण करते हैं और विनम्र भाव से कहते हैं –
👉 “हे बागड़ नरेश! हम आज भी आपकी सेवा में हाजिर हैं, आदेश करें।” 🚩

🌿 अर्जन और सर्जन की कथा व गोगा जी का मंदिर

कहा जाता है कि जहां अर्जन और सर्जन की मृत्यु हुई थी, उस स्थान पर बरसात के मौसम में आज भी लाल रंग की घास 🌱 उगती है। हालांकि हाल ही में जब हमने वहां जाकर निरीक्षण किया तो ऐसा कुछ नहीं दिखा। किंतु वहां के पुजारी ने बताया कि भारी वर्षा ☔ के समय यह घास उग आती है।

यही नहीं, गोगा जी के साथ-साथ अर्जन और सर्जन की भी मूर्तियां 🕉️ वहां की जमीन से निकली हुई मानी जाती हैं, जो गोगा जी के समय की हैं। गोगा जी और उनके भाइयों का यह प्राचीन मंदिर ददरेवा से लगभग 8.5 किलोमीटर दूर खुड्डी नामक स्थान पर स्थित है।

✋ हाथों की छाप और संतान सुख की मान्यता

इस मंदिर की बाहरी दीवारों पर हजारों हाथों की छापें ✋ बनी हुई हैं। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जिन लोगों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं होती, वे यहां आकर मेहंदी से हाथ का छापा लगाकर मन्नत मांगते हैं 🌸। माना जाता है कि इससे प्रसन्न होकर माता सीरियल उन्हें संतान का आशीर्वाद देती हैं।

कुछ लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी यहां छापा लगाते हैं। इसी तरह खेत बिजाई के समय स्थानीय लोग हल को राखी 🎋 बांधते हैं। इसे गोगा राखड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से खेतों में अच्छी पैदावार 🌾 होती है।

🙏 गोरखनाथ मंदिर और पवित्र बावड़ी

अगर आप कभी ददरेवा जाएं, तो सबसे पहले गुरु गोरखनाथ मंदिर के दर्शन अवश्य करें। इसे गोरखटीला कहा जाता है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां गुरु गोरखनाथ ने तपस्या 🔥 की थी।

गोरखनाथ मंदिर के बाद गोगा जी के मंदिर के दर्शन किए जाते हैं। यहां स्थित पवित्र बावड़ी के बारे में कहा जाता है कि यह बावड़ी गुरु गोरखनाथ ने नगर की पानी की समस्या 💧 दूर करने के लिए बनवाई थी। इस बावड़ी से जुड़े अनेकों किस्से और कथाएं आज भी लोगों की आस्था को जीवित रखती हैं। 🌟

भाग 8👉🏼

भाग 8 में आप जानेगे कैसे वीर गोगा ही धरती माँ की गोद में समां गए।

<- भाग १ 

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