⚔️ भाइयों का वध और माता का क्रोध
गोगा जी अर्जन और सर्जन के कटे हुए सर लेकर ददरेवा के महलों में पहुँचे।
यही वह क्षण था, जिसका भय माता बाछल को पहले से था।
अपने ही पुत्र के हाथों में भाइयों के सिर देखकर माता का क्रोध सीमा पार कर गया।
भोलिभाली माता ने क्रोध में कहा –
“तुमने अपने ही भाइयों को मार डाला।
अब इसी समय यहाँ से चले जाओ और जीवन में मुझे कभी अपनी शक्ल मत दिखाना।”
💔 गोगा जी का दुख और रानी सीरियल का आग्रह
माता की आज्ञा सुनकर गोगा जी का हृदय व्यथित हो गया।
भरे नेत्र और दुखी मन से वे ददरेवा से निकल पड़े।
पीछे-पीछे माता सीरियल (रानी) भी दौड़ी चली आईं।
उन्होंने गोगा जी से साथ चलने की ज़िद की।
पर गोगा जी ने कहा –
“अभी मेरा कोई ठिकाना नहीं है,
मैं आपको अपने साथ कहाँ रखूँगा?”
तब रानी ने उनसे वचन लिया कि वे समय-समय पर उनसे मिलने अवश्य आएँ।
गोगा जी ने अनिच्छा के बावजूद हामी भर दी,
लेकिन शर्त रखी कि इस बात का ज़िक्र वे किसी से न करें।
🙏 गुरु गोरखनाथ की शरण
इसके बाद गोगा जी गोरख टीले की ओर बढ़ गए।
रानी सीरियल आँखों में आँसू लिए अधीर खड़ी उन्हें देखती रही।
गोगा जी वहाँ पहुँचकर अपने गुरु गोरखनाथ के चरणों में प्रणाम किया।
गुरु ने कारण पूछा तो गोगा जी ने कहा –
“गुरुदेव, मैं अब पूर्ण रूप से आपकी शरण में आ चुका हूँ।”
गुरु गोरखनाथ मुस्कुराए और बोले –
“जैसी तुम्हारी इच्छा।”
🕉️ तपस्या और वचन का निर्वाह
गोगा जी दिन में गुरु की आज्ञा अनुसार गहन तपस्या में लीन रहते।
और रात्रि में रानी को दिए वचन के कारण उनसे मिलने चले जाते।
भोर होते ही वे पुनः गोरख टीले पर लौट आते।
उनके मन में हमेशा यह डर रहता कि
यदि माता ने देख लिया तो उनकी आज्ञा का उल्लंघन होगा,
परंतु रानी को दिया वचन निभाना भी आवश्यक था।
🤔 दुविधा और गुरु गोरखनाथ की सीख
इस गहरी दुविधा में फंसे गोगा जी ने जब अपनी व्यथा गुरु गोरखनाथ जी को सुनाई 🙏, तो गुरु ने धैर्यपूर्वक कहा –
"बेटा, शास्त्रों के अनुसार अपना दिया हुआ वचन निभाना ही क्षत्रिय का परम धर्म है। अतः तुम अपने वचन का पालन अवश्य करो।"
⏳ समय बीतता गया और एक दिन फिर तीज का त्यौहार आया।
💃 रानी सीरियल का श्रृंगार और माता बाछल का क्रोध
तीज के पावन अवसर पर रानी सीरियल 16 श्रृंगार कर तीज झूलने की अनुमति लेने अपनी सास माता बाछल के पास पहुँची।
लेकिन रानी के मनोहर श्रृंगार को देखकर माता बाछल क्रोध में भर उठीं 😠 और बोलीं –
"जब तुम्हारा पति घर-बार छोड़ चुका है, तो यह श्रृंगार किसे रिझाने के लिए कर रही हो?"
यह लांछन सुनकर रानी सीरियल का धैर्य टूट गया 😔। उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा –
"चले तो आपके लिए गए हैं, परंतु मुझसे तो प्रतिदिन रात्रि को मिलने आते हैं।"
👀 माता बाछल का संदेह और द्वारपाल की आज्ञा
माता बाछल ने रानी को झूठा ठहराया और कहा –
"जब तक मैं स्वयं अपनी आंखों से न देख लूँ, तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं करूँगी।"
इतना कहकर माता ने रानी को नौलखे बाग में झूला झुलाकर वापस महलों की ओर रुख किया।
उन्होंने द्वारपाल को आदेश दिया –
"रानी सीरियल के कक्ष पर कड़ी नज़र रखना। यदि गोगा आएं तो तुरंत मुझे सूचित करना।" 🕯️
🐎 गोगा जी का आगमन और माता बाछल का सामना
रात्रि होने पर गोगा जी महाराज ददरेवा के महलों में पधारे 🌙।
द्वारपाल ने तुरंत माता बाछल को सूचना दी।
माता बाछल प्रतीक्षा करने लगीं। जैसे ही गोगा जी बाहर आए और अपने प्रिय नीले घोड़े पर सवार हुए 🐎,
माता तुरंत सामने आ खड़ी हुईं और घोड़े की लगाम पकड़ ली ✋।
गोगा जी ने यह सोचकर मुख फेर लिया कि कहीं माता द्वारा दी गई "कभी मुंह न दिखाने" की आज्ञा का उल्लंघन न हो जाए 🙏।
किन्तु यह भली-भांति ज्ञात हो गया था कि माता उनका मुख देख चुकी हैं।
🐎 नीले की रफ्तार और गोगा जी का वियोग
इतने में माता काछल भी वहां पहुंच गई और माता बाछल से बोली –
"यदि गोगा को तुम नहीं रोक सकती तो मुझे आज्ञा दो, जो जा चुके हैं, वे कभी लौटकर नहीं आने वाले।
फिर अब क्यों वंश नाश पर उतारू हो?।"
यह सुन गोगा जी ने नीले घोड़े को एड़ लगाई और नीला हवा से बातें करने लगा।
माता बाछल और काछल दोनों पीछे से आवाज़ देती रह गईं, उन्होंने गोगा जी के पीछे घुड़सवार भी दौड़ाई किंतु नीले की रफ्तार के आगे घुड़सवार केवल हाथ मलते रह गए।
🙏 गुरु चरणों में गोगा जी
हृदय पर पर्वत समान भारी बोझ लिए गोगा जी गुरु गोरखनाथ के चरणों में आ गिरे और बोले –
"गुरुवर! मैं अपनी माता की आज्ञा का पालन करने में असमर्थ रहा। अब मेरा जीवन और मरण समान है।"
तब गुरु गोरखनाथ ने उन्हें समझाया कि –
"पुत्र गोगा! अभी भूलोक पर तुम्हारा कार्य शेष है। तुम्हारी आत्मा किसी साधारण शक्ति से उत्पन्न नहीं, बल्कि समुद्र मंथन से प्राप्त दिव्य गद से उत्पन्न है। अतः तुम अजर-अमर हो।
तुम्हें इस कलयुग के समय में दीन दुखियों की अरदास सुन उनका सहारा बनना होगा अतः तुम उत्तर की तरफ जाओ और जहां सूर्य अस्त हो जाए वहीं धरती माता की गोद में स्थान ग्रहण करो"
🌅 धरती माता की गोद में गोगा जी
गुरु की आज्ञा पाकर गोगा जी उत्तर दिशा की ओर बढ़ चले।
संध्या होते-होते वे ददरेवा से लगभग 92 किमी दूर पहुंचे और रेतीले टीलों की ओट में ढलते सूर्य को प्रणाम किया।
उन्होंने धरती माता से प्रार्थना की –
"मां! मुझे अपनी गोद में स्थान दो।"
तभी धरती फटी और गोगा जी नीले घोड़े सहित धरती माता की गोद में समा गए।
🏹 अमर समाधि का प्रतीक
धरती माता में विलीन होने के पश्चात भी, जमीन से आधा बाहर निकला भाला और उस पर लहराता ध्वज इस बात का प्रमाण था कि –
⚔️ यही वह स्थान है, जहां जाहरवीर गोगा जी ने अपनी समाधि ली।
भाग 9 में आप जानेगे समाधि के बाद चमत्कार।
<- भाग १
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