9. माँ सिद्धिदात्री

 

🌺9. माँ सिद्धिदात्री की कथा और महिमा 🌺

🙏परिचय

माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री कहलाती हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ (आध्यात्मिक और अलौकिक शक्तियाँ) प्रदान करने वाली देवी हैं। इनके चार भुजाएँ हैं, जिनमें से

  • दाहिने हाथ में कमल पुष्प

  • एक हाथ में अभय मुद्रा

  • अन्य हाथों में चक्र और गदा सुशोभित रहते हैं।

इनका वाहन सिंह है, साथ ही ये कमल पुष्प पर आसीन भी होती हैं। इनका स्वरूप अत्यंत शांत, भव्य और करुणामयी है।


📖 कथा

मार्कण्डेय पुराण और देवीपुराण के अनुसार, देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना सुनकर माँ भगवती ने सिद्धिदात्री स्वरूप धारण किया। वे ही देवी हैं जिन्होंने भगवान शिव को आठों सिद्धियाँ प्रदान कीं। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ, और वे अर्द्धनारीश्वर कहलाए।

सिद्धिदात्री देवी साधकों को अष्टसिद्धियाँ प्रदान करती हैं:

  1. अणिमा – सूक्ष्मतम रूप धारण करने की शक्ति।

  2. महिमा – विराट रूप धारण करने की शक्ति।

  3. गरिमा – भारी से भारी बनने की शक्ति।

  4. लघिमा – हल्का से हल्का बनने की शक्ति।

  5. प्राप्ति – इच्छित वस्तु की प्राप्ति की शक्ति।

  6. प्राकाम्य – इच्छित स्थान पर जाने की शक्ति।

  7. ईशित्व – सम्पूर्ण सृष्टि पर नियंत्रण की शक्ति।

  8. वशित्व – सभी प्राणियों को वश में करने की शक्ति।

ब्रह्मवैवर्तपुराण में इनकी संख्या 18 सिद्धियाँ बताई गई हैं,

जिनमें- 1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्‌सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि, करने की सामर्थ्य आदि अद्भुत शक्तियाँ सम्मिलित हैं।


 महिमा

  • माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने वाला भक्त सभी सांसारिक और पारलौकिक इच्छाओं से ऊपर उठकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

  • इनकी कृपा से भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष नहीं रहती जो अधूरी हो।

  • ये साधक को ब्रह्मांडीय शक्ति से जोड़ देती हैं, जिससे वह विषयरहित होकर दिव्यता में स्थित होता है।


🙏 पूजा

नवरात्रि की नवमी तिथि को माँ सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है।

  • इस दिन विशेष रूप से शास्त्रीय विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।

  • साधक को पूर्ण निष्ठा और भक्ति भाव से देवी का ध्यान करना चाहिए।

  • इस पूजा से केतु ग्रह से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं।

  • साधना में रुद्राक्ष, कमल या चंदन की माला से मंत्र जप करना शुभ माना गया है।


🕉️ मंत्र एवं स्तुति

🔹 मूल मंत्र
➡️ "ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।"

🔹 स्तोत्र मंत्र
➡️ "या देवी सर्वभू‍तेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।"

अर्थ:
हे माँ! आप समस्त प्राणियों में सिद्धिदात्री रूप से विद्यमान हैं। आपको बारंबार नमन है। हे माँ, कृपाकर हमें अपने अनुग्रह का पात्र बनाइए।


सार

माँ सिद्धिदात्री की उपासना से साधक को सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। वे सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर दिव्य लोकों में विचरण करता है और अंततः मोक्ष को प्राप्त करता है। नवरात्रि की नवमी को इनकी पूजा करने से जीवन से सभी दुख, दोष और बाधाएँ दूर होती हैं।


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